१६८८ ई० में लाल पत्थर का बना यह मकबरा "आबू का मकबरा" के नाम से जाना जाता है। हालांकि आबू मोहम्मद खान नवाब ने इसे अपने पिता की मृत्यु के उपरान्त बनवाया था। आबू मोहम्मद खान को मुग़ल शासक जहांगीर और शाहजहां के काल में हज़ारी का ओहदा मिला हुआ था जिसके अर्थ हैं कि मुग़ल सेना के एक हज़ार सिपाही और ८०० घुड़सवारों का संचालन उनके हाथों में था। ये बात बहुत काम लोगों को ज्ञात है कि आबू के मकबरे का सम्बन्ध १८५७ के स्वाधीनता संग्राम से भी है। १९ वी शताब्दी के एक फोटो जर्नलिस्ट फ़ैलिस बीटो ने इस मकबरे की पहली तस्वीर १८५८ ई० में खींची थी व एक किताब में उन्होंने ये लिखा था के इस मकबरे के प्रांगण में स्वतंत्रता संग्राम की योजना बनाई जाती थी।