मेरठ के घंटाघर को 1913 ई० से पहले "कम्बोह दरवाज़ा" के नाम से जाना जाता था। इसे मेरठ के कम्बोह नवाब आबू मोहम्मद खान ने सत्रहवीं शताब्दी में बनवाया था। १९१३ में इसका जीर्णोद्धार हुआ और इलाहाबाद हाईकोर्ट में लगी घड़ी को यहाँ स्थापित किया गया। तब से यह "घंटाघर" कहलाने लगा। एक वक़्त था जब मेरठ शहर इसी घड़ी के बताये समय पर चलता था। आज़ादी के बाद इस दरवाज़े का नाम नेताजी के नाम पर "नेताजी सुभाष चन्द्र बोस" द्वार हुआ। ये लाल पत्थर से बना घंटाघर मेरठ का प्रतीक है। कई बॉलीवुड फिल्मों में जब इस शहर का ज़िक्र होता है, तो घंटाघर की तस्वीर ज़रूर दिखाई देती है। राष्ट्रीय पर्वों और त्योहारों पर घंटाघर की छटा देखते ही बनती है।