यह दरवाज़ा नवाब खैरन्देश खान ने 1690 ई० के आसपास बनवाया था। मेरठ में शेष आठ दरवाज़ो की तुलना में खैरनगर दरवाज़े ने आज भी इतिहास को संजोये रखा है। छत पर ख़ूबसूरत नक्काशी व लकड़ी का कीलनुमा दरवाज़ा आज तक स्थिर है क्योंकि ब्रिटिश काल में यहाँ पर एक पुलिस चौकी बना दी गयी थी। कम्बोह नवाबों में खैरन्देश खान का पद शायद सबसे बड़ा था। तीन मुग़ल शासकों - शाहजहां, औरंगज़ेब और शाह आलम की सेना में मनसबदार रहे। औरंगज़ेब के शासन में 5000 से बढ़ाकर दस हज़ार घुड़सवारों की मनसबदारी खैरन्देश खां को दी गयी थी। आज मेरठ में खैरनगर दवाओं के होलसेल मार्किट के रूप में जाना जाता है।