शाहपीर रहमतुल्लाह का मकबरा मुगल शासक जहांगीर की रानी नूरजहां ने १६२० में शुरू करवाया था। वह उन दिनों के विख्यात सूफी संत शाहपीर से मिलने मेरठ आई थी और शाहपीर ने उनके आग्रह पर जहांगीर का इलाज भी किया था। बादशाह को नशे की लत थी और इस इलाज से उसे फ़ायदा भी हुआ था। प्रसन्न होकर शाही दंपत्ति ने इस मकबरे को बनवाने का आदेश जारी किया था। ये मकबरा लाल पत्थर से बना मुगल वास्तुकला को बड़ी खूबसूरती से दर्शाता है। परन्तु ये शायद अकेला ऐसा मकबरा है जिसका गुंबद नहीं है और मजार नीले आकाश के ठीक नीचे स्थित है। मकबरे के अधूरेपन की भी अपनी एक कहानी है। मुगल सेना के एक आला अधिकारी महबत खां ने कश्मीर में विद्रोह कर दिया और जहांगीर अपनी सेना के साथ विद्रोह को कुचलने के लिए कश्मीर की ओर कूच कर दिया यधपि शाहपीर ने उनको ऐसा करने से मना किया था। जहांगीर को कैद कर लिया गया, हालांकि नूरजहां ने उनको छुड़ा लिया मगर कुछ समय बाद १६२७ में शहंशाह की राजौरी में मौत हो गई। और सत्ता परिवर्तन के पश्चात ये मकबरा फिर कभी पूरा नहीं हो सका।