सूफी संत हज़रत शाहपीर के नाम पर बनाया गया ये गेट मेरठ के नौ दरवाज़ों में से एक है और इसको मुग़ल काल में मध्य सत्रहवीं शताब्दी में बनवाया गया था। १८२९ में उस समय के एक जागीरदार ने इसका जीर्णोद्धार किया था। शाहपीर मुग़ल शहंशाह जहांगीर के करीबी थे और नूरजहां के आग्रह पर उन्होंने शहंशाह का इलाज भी किया था जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने एक भव्य मकबरा बनवाने का आदेश दिया था - जो आज भी शाहपीर का मकबरा के नाम से मशहूर है। समय वक़्त के साथ इस पूरे क्षेत्र का नाम शाहपीर गेट पड़ गया। शाहपीर गेट की एक ख़ासियत ये भी है की यहाँ लज़ीज़ शीरमाल तैयार की जाती है जिसकी मिठास खाने के शौक़ीन लोगों को दूर दूर से अपनी ओर आकर्षित करती है।